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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

3. भूख से मौत 


कलेक्ट्रेट में आज सुबह से ही हड़कंप मचा हुआ था । सुबह से कम से कम दस बार मुख्यमंत्री निवास से फोन आ गया था । स्वयं मुख्यमंत्री जी ने कलेक्टर साहब से बात की थी । कलेक्टर साहब तो इसी बात से धन्य हो गये कि सी एम साहब ने उनसे सीधे बात की थी । समाचार ही कुछ ऐसा था कि चारों ओर हड़कंप मचा हुआ था । सचिवालय के गलियारों में केवल एक ही चर्चा थी कि भूख से आखिर पांच आदमियों की जान कैसे गई ? सरकार द्वारा "मुफ्त खाद्यान्न योजना" चलाने के बाद भी भूख से मौत हो गयी, यह आश्चर्य का विषय था सबके लिए ।


राज्य के एक प्रमुख अखबार के पहले पन्ने पर यह खबर मोटे मोटे अक्षरों में छपी थी । कुछ लोगों का विश्वास अभी भी अखबारों पर बना हुआ है । सभी लोग इनकी हकीकत से रूबरू नहीं हुए हैं अभी तक । लोग ये नहीं जानते कि अब पत्रकारिता समाज का आईना नहीं रह गई है बल्कि यह एक "धंधा" बन गई है । मीडिया पर एक कहावत चरितार्थ होती है आजकल । "गंदा है पर धंधा" है । सोशल मीडिया के कारण बड़ी संख्या में लोग इन "खबरों के व्यापारियों" की हकीकत पहचान चुके हैं । मीडिया में अब पत्रकारिता को पूजा समझने वाले लोगों के बजाय व्यापारी लोग आ गए हैं जिनका एक ही मोटिव है "पैसा और पॉवर" कमाना । ऐसे लोग मीडिया को पवित्र पेशा नहीं वरन अपने स्वार्थ की पूर्ति का साधन मानते हैं । 

मीडिया के लोग दो प्रकार से खबर छापते हैं । एक तो जनता में सनसनी फैलाने के लिए । ऐसी ऐसी फेक खबरें छापते हैं कि यदि आदि पत्रकार स्वयं नारद मुनि आ के उससे पूछें कि भाई , आपने यह खबर कहां से उठाई ? मेरे पास न तो कोई समाचार है और न ही कोई जानकारी है । तेरी खबर का स्त्रोत क्या है ? लेकिन कोई स्रोत हो तो बताए । बस, उसे तो अपना "एजेण्डा" चलाना था, चला दिया । जिनको सिर धुनना है, धुन रहे हैं ।
और दूसरी खबर होती है अपने अपने आकाओं को खुश रखने के लिए उनकी पसंदीदा खबरें । यानी कि विशुद्ध "एजेंडा" । इनके अतिरिक्त और  कोई खबर होती ही नहीं है अखबारों में ।


जब अखबार से उस खबर का स्रोत बताने के लिए कहा गया तो अखबार का मालिक बोला "एक नेता का बयान ही इस खबर का आधार है । और वह नेता भी कोई छोटा मोटा नेता नहीं है । एक कद्दावर नेता है । खानदानी चिराग है । इससे बड़ा और कौन सा स्रोत चाहिए" ? । अब आप समझ ही गए होंगे कि यह एक "भक्त" अखबार था जो अपने नमक का हक अदा कर रहा था । हमारे शास्त्रों में नमक हलाली को बहुत महत्व दिया जाता है । नमक हलाल भी आजकल एक दुर्लभ प्रजाति है । इस अखबार के संबंध "पुराने दल" के साथ बरसों से चले आ रहे हैं । समय समय पर यह चैनल अपनी "भक्ति" का प्रदर्शन करता रहता है ।


" नेता तो बयान देते ही रहते हैं । क्या वे कोई डॉक्टर हैं जिन्होंने उनके शवों की जांच कर ली हो और इस तथ्य की पुष्टि हो गई हो कि ये मौत भूख से ही हुई है " ? नारद मुनि ने फिर अपनी बात रखी । 


अखबार के मालिक ने जवाब दिया " ये काम सरकार का है । हमने समाचार छाप दिया अब बाकी काम सरकार करे । सरकार इसकी जांच किसी बड़े अधिकारी से करवाये , तब जाकर दूध का दूध और पानी का पानी होगा । सरकारें होती ही जांच करवाने के लिए हैं ? यदि सारे काम हम अखबार वाले ही कर लेंगे तो सरकार क्या करेगी "? फिर सरकार चुनने का क्या फायदा ?  पत्रकार ने अपना काम कर दिया और अखबार ने अपना । इसी में ही खेला हो गया । अखबार वाले ने अपना ऐजेण्डा फिट कर दिया ।  उन मौतों को भूख से हुई मौत  बता दिया और सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया था । अब सरकार भागी भागी फिरती रहे इनकी बला से । एक फेक खबर चलाकर आखिर उसने कितना झूठ परोस दिया था जनता के समक्ष । जनता में तेजी से हलचल हो रही थी ।


बात सरकार की छवि की थी । इस समाचार से सरकार की छवि गरीब विरोधी बन रही थी । वैसे चाहे सरकार गरोबों के खिलाफ और पूंजीपतियों के पक्ष में ही काम करती हो , मगर वह दिखना चाहती है गरीबों की हिमायती । इसके लिए पूरा ईको सिस्टम तैयार किया है सरकार ने । कुछ पैसे, पद और पुरुस्कारों के लिए लोग क्या क्या नहीं करते ? अपने बाप तक कि पहचानने से इंकार कर देते हैं । यह ईको सिस्टम यही करता है । दिन को रात और रात को दिन दिखाता रहता है । बेचारी भोली जनता इस ईको सिस्टम द्वारा दिखाई गई फिल्म से अभिभूत होकर जय जयकार करती रहती है ।


सरकार से कलेक्टर को हुक्म हुआ कि तुरंत इसकी रिपोर्ट सरकार को भेजें । सरकार के आदेश के बाद कलेक्टर भरतनाट्यम करने लग जाते हैं । कलेक्टर ने इसकी छानबीन करने के लिए कई अलग अलग टीमें गठित कर दी । मौके पर जांच के लिए जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की अध्यक्षता में एक टीम बनाई गई । इसका काम था कि वह जांच करे कि क्या उसके घर में अन्न था या नहीं ?  सी एम एच ओ की अध्यक्षता में डॉक्टरों की एक टीम बनाई गई जो मृतकों पोस्ट मार्टम करवायेगी और दूसरे काम करेगी । वह यह भी बताएगी कि मौत भूख से हुई थी या किसी और वजह से । जिला जनसंपर्क अधिकारी की अध्यक्षता में एक टीम बनाई गई जो खबरों को रेग्यूलेट करेंगी । अब आगे जो भी खबरें छपें वे सरकार के पक्ष में ही छपनी चाहिए  ।


अतिरिक्त जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में एक टीम गठित की गई जो मृत व्यक्ततियों के परिवार से बात करके मुआवजे की राशि का निर्धारण करवायेगी और अगर "सौदेबाजी" की जरूरत भी पड़े तो वह सौदेबाजी भी करेगी ।  इस प्रकार कलेक्टर ने समस्त अधिकारियों को अलग अलग काम पर लगा दिया गया ।


टीम ने मौके पर जाकर जांच की । सबके घरों की तलाशी ली गई । सबके घरों में दो दो बोरी गेहूं पड़े हुए थे । "खाद्यान्न सुरक्षा योजना" के अंतर्गत सबको इतना खाद्यान्न मिलता था कि खुद खाते , जमा करते और बाकी को बेचकर दारू पार्टी भी करते थे । लोग दबे स्वर में यह बात भी कर रहे थे कि दारू देसी थी , ठेठ हथकढ़ । उसके जहरीली होने के कारण ही ये लोग मरे थे । एक अखबार वाले को जब यह पता चला तो वह आकर रिपोर्ट बना कर ले गया । 


एक स्थानीय नेता जी को जब उनकी मौत का पता चला तो अपना वोट बैंक पक्का करने की गरज से और मेल कूटने की गरज से वहां पर पहुंचे। उसने घरवालों से मिलकर यह योजना तैयार की कि दारू से हुई मौत को भूख से हुई मौत दिखाना है । इसके लिए जितनी राशि सरकार देगी , उसका बंटवारा दोनों में होगा । जब नेता जी को पता चला कि इसकी खबर तो कोई पत्रकार पहले ही ले जा चुका है तो रातों रात उसे बुलवाया गया और दोनों में "गोल मेज सम्मेलन " हुआ जिसमें यह तय किया गया कि लूट का माल ( सरकारी सहायता) के तीन हिस्से होंगे। एक परिवार का , दूसरा नेता जी का और तीसरा पत्रकार का । इस तरह वह "गोल मेज सम्मेलन" संपन्न हुआ ।


उधर सरकार के स्तर पर भी कुछ उपाय किए गए । अखबार के मालिक से  मुख्यमंत्री जी ने स्वयं बात की और उन्हें आश्वस्तकर दिया गया कि उनका भी "ध्यान" रखा जायेगा । अगले दिन सरकार का बड़ा बड़ा विज्ञापन उस अखबार के प्रथम पृष्ठ पर था । उसी खबर को पुन: इस तरह छापा गया जिससे यह महसूस हो कि ये मौतें भूख से नहीं अपितु दारू पार्टी से हुई थीं । कलेक्टर का बयान प्रमुख रूप से छापा गया । बहती गंगा में हाथ धोना ही सबसे बुद्धिमानी का काम है । अखबार के मालिक ने बुद्धिमानी का परिचय दे दिया ।


लोगों को यह समझने में वर्षों लग जाते हैं कि किसी का

हृदय परिवर्तन ऐसे कैसे हो जाता है ? पैसा क्या नहीं करवा लेता है हर किसी से । सारी ईमानदारी धरी रह जाती है ।थूककर चाटना तो कोई नेता, अफसर, मीडिया और पुलिस से सीखे ।


इस दुनिया में किसी को किसी से कोई लेना-देना नहीं है । बस केवल अपने से ही लेना-देना है । जब तक मतलब है तब तक आदर है । मतलब निकलने के उसके पश्चात हाथ जोड़कर बोला जाता "सादर" है । पैसा ही माई बाप है पैसा लेने में क्या पाप है । पैसा भगवान तो नहीं मगर पैसे में स्वयं भगवान आप हैं ।


ससुराल फिल्म के गीत से इस कहानी का अंत करूंगा

 मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं

यूं जा रहे हैं जैसे हमें , जानते नहीं

मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं ।


इस प्रकार से

दारू पीने से हुई मौतों को "भूख से हुई मौतों" में बदला जाता है । जो भी व्यक्ति इस कला में उस्ताद है समझो कि उसी का राज है ।




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4 Comments

दशला माथुर

20-Sep-2022 12:58 PM

Bahut khub 👌

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Niharika

08-Jul-2022 10:33 PM

Beautiful story

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shweta soni

08-Jul-2022 09:43 PM

Nice 👍

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